Tuesday, 30 August 2016

ग्राहकता ::



      विद्यालय की शिक्षा समाप्त कर लौटे एक नवयुवक को अपने ज्ञान का बड़ा अभिमान हो गया। कोई भी आता वह किसी को भी नमस्कार नहीं करता था, उसे अहंकार था कि अब मुझे सीखने के लिए कुछ रहा नहीं। इस अभिमान में वह अपने माता-पिता की भी अवज्ञा करता।पिता बड़ा चतुर था उसने जान लिया कि मति-भ्रम बेटे को अहंकार से उबारा गया तो उसका विकास रुक जाएगा। वह एक दिन अपना सर्वनाश कर लेगा।सो एक दिन घर से थोड़ी चीनी ली और उसे धूल में मिलाकर घर के एक कोने में पटक दी। पिता जब वहाँ से चला गया तो के छोटे लड़कों ने सोचा धूल से निकाल कर चीनी खानी चाहिए पर मुश्किल यह थी कि धूल से चीनी के कण ढूँढ़ निकालना कठिन था। लड़कों ने सोचा बड़े भैया बहुत विद्वान हैं, उन्हें कोई ऐसी जरूर कोई ऐसी विद्या आती होगी जिससे इस चीनी को धूल से अलग किया जा सके। बालकों ने जाकर निवेदन किया तो वे ऐंठते हुए वहाँ पहुँचे भी पर ढेर में चीनी ऐसे मिल गई थी कि उसे देखते ही उनकी अकल गुम हो गई। कई उपाय किए पर तोले भर चीनी भी नहीं निकाली जा सकी। 
जितनी युवक की खीझ बढ़ती उतना ही छोटे बच्चे हँसते और उनके अहंकार को अँगूठा दिखाते। हारकर युवक वहाँ से भाग गया और शाम तक किसी को दिखाई दिया।सायंकाल पिताजी भी आए और पुत्र जी भी। ढेर के पास से गुजरे तो वह आश्चर्यचकित थे कि धूल के ढेर से सारी चीनी गायब थी। पिता ने छोटे-छोटे लड़कों को बुलाया और डाँटकर पूछा-इसकी चीनी कौन निकाल ने गया।’’ 
लड़कों ने कहा-पिता जी वह तो सब चींटियाँ चुन ले गईं।’’ युवक यह सुनते ही हैरान रह गया। जो काम वह घंटों की परेशानी के बाद भी नहीं कर सका उसे चींटियाँ इतनी आसानी से कर गईं।युवक का सारा अहंकार गल गया। उसने सोचा यदि चींटी जैसी गुण ग्राहकता से हम भी वंचित हुए होते तो अब तक कितनी उन्नति कर गए हो।

दीर्घकालीन साधना करें




प्राचीन कहानी है। कहा जाता हैकिसी कारणवश इन्द्र क्रुद्ध हो गया। उसने घोषणा कर दीअब बारह वर्ष तक मेह नहीं बरसेगा। एक वर्ष भी बरसात हो तो हाहाकार मच जाता है। बारह वर्ष की घोषणा सुन जनता मायूस हो गई। बरसात का समय। किसान हल और बैलों को लेकर खेतों में गए। भूमि को साफ किया। हल जोते। इन्द्र ने देखा, उसने सोचामेरी स्पष्ट घोषणा है कि बारिस नहीं होगी, फिर ये क्यों खेती कर रहे हैं? वेश बदलकर इन्द्र नीचे आया। किसान इकट्ठे हो गए। इन्द्र बोलाक्या तुमने इन्द्र की यह घोषणा नहीं सुनी कि बारह वर्ष तक मेह नहीं बरसेगा। लोगों ने कहाहमने सुना है। इन्द्र ने पूछाफिर यह व्यर्थ का प्रयत्न क्यों कर रहे हो? क्यों भूमि को साफ कर रहे हो? क्यों बैलों को तकलीफ दे रहे हो? क्यों बुआई की तैयारी कर रहे हो? मेह तो बरसेगा नहीं। किसान बोलेमेह बरसे या बरसे, हम तो भूमि की सफाई भी करेंगे और हल भी चलाएंगे।
यदि हम यह प्रयत्न करना छोड़ देंगे तो हमारी भावी पीढ़ी बिल्कुल बेकार हो जाएगी, कृषि करना भूल जाएगी। बारह वर्ष के बाद वे क्या खाएंगे? हम यह कार्य प्रतिवर्ष करते रहेंगे। मेघ बरसे या नहीं बरसे, यह उसकी इच्छा है, किन्तु हम अपना धन्धा नहीं छोड़ेंगे, कृषि करते चले जाएंगे। ऎसा करते-करते एक दिन अवश्य आएगामेह भी बरसेगा, खेती भी होगी। आखिर इन्द्र हारेगा, हम नहीं हारेंगे। कहने का अर्थ यह कि दृढ़ संकल्प होता है परिवर्तन का, प्रशिक्षण का तो इन्द्र हार सकता है, किसान कभी हार नहीं सकता।